घाट घाट से अलग अलग जल भरे हजारों ग्रंथ हैं
बिसवां -सीतापुर/अवधी मधुरस संस्थान के तत्वावधान में संपन्न कविगोष्ठी की अध्यक्षता अपने जनपद के ख्यातिप्राप्त कवि साहित्य भूषण कमलेश मौर्य मृदु ने की। श्री मृदु के जानकीपुरम लखनऊ स्थित आवास पर संपन्न कवि गोष्ठी का संचालन बाराबंकी से पधारे हास्य व्यंग कवि संदीप अनुरागी ने किया। लखनऊ के वरिष्ठ कवि शशांक पांडे द्वारा प्रस्तुत मां वीणापांणि की वंदना से कवि गोष्ठी का शुभारंभ हुआ। मुख्य अतिथि अमेठी से पधारे वरिष्ठ कवि ज्ञानेंद्र पांडे ने सावन पर मनोहारी छंद प्रस्तुत किये साथ ही अवधी कविताएं जमकर सुनी गईं।
उन्होंने कहा-
बेरि केरि कयि संगु निभयि ना ।
अन्धि भक्ति दिनु-चारि सरयि ना ।
झूंठयि पोबयि झूंठयि मोबयि
यहि सनु कबहूॅं पेटु भरयि ना।।
संचालन कर रहे संदीप अनुरागी ने जमकर हंसाया-
कुंभ मा नहाय बदि डुबकी लगाइनि जो निकसि सकीं ना बूढ़ा चली गई तरका।
बैठि कइहां रोवा गवा दसवां मनावा गवा तेरही के दिन बूढ़ा लउटि आईं घरका।
वयोवृद्ध कवि उमाशंकर तिवारी ने अपने काव्य पाठ से गोष्ठी को गति दी। कवि गोष्ठी के अध्यक्ष कमलेश मौर्य मृदु ने विभिन्न विषयों पर छंद व कविताएं सुनाकर वाहवाही बटोरी। उन्होंने गंगा के माध्यम से धर्म और संप्रदाय को परिभाषित करते हुए कहा-
गंगा नदी धर्म है इसके घाट अनेकों पंथ हैं।
घाट घाट से अलग अलग जल भरे हजारों ग्रंथ हैं।
ग्रंथ पंथ कोई अपना लो किसी घाट पर स्नान करो।
लेकिन इतना ध्यान रहे मत गंगा का अपमान करो।।
दीपू चौहान ने अतिथियों का स्वागत किया तथा श्रीमती रोशनी कुशवाहा ने आभार व्यक्त किया।